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Devshayani Ekadashi

युधिष्ठर ने कहा- हे भगवन! आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम और क्या माहात्म्य है?

श्रीकृष्ण ने कहा- एकादशी से उत्तम कोई दूसरा व्रत नहीं है। पापों से मुक्त होने के लिए यह व्रत अवश्य करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वे अवश्य ही नर्क भोग के अधिकारी होते हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम देवशयनी या पद्मा एकादशी है। इस व्रत के करने से भगवान अत्यंत ही प्रसन्न होते हैं। इस व्रत की एक पौराणिक कथा है, जिसके सुनने और कहने से घोर पाप भी छूट जाते हैं।

कथा

सुर्यवंश में एक चक्रवर्ती, सत्यवादी और अत्यंत ही प्रभावशाली मान्धाता नाम के राजा उत्पन्न हुए। ये अपनी प्रजा का पालन पुत्र के सद्रश करते थे। किसी कारणवश पूर्वकर्म के फल से उनके राज्य में जल-वृष्टि न हुई, जिससे भूख से पीड़ित होकर उनकी प्रजा अत्यंत कष्ट पा रही थी और अन्नाभाव के कारण यज्ञ एवं वेदाध्यन आदि सभी धर्म कार्य उनके राज्य में बंद हो गए थे।

एक दिन राजा ने प्रेमपूर्वक पूजन किया और कुछ मनुष्यों को साथ लेकर वन में घूमते-घूमते ब्रह्मपुत्र एवं अत्यंत ही प्रतापी और तेजस्वी महर्षि अंगीरा के आश्रम में जा पहुँचे। राजा ने महर्षि से अपने आने का कारण कहा- तब महर्षि ने कहा- हे राजन! यह युग सभी युगों में श्रेष्ठ है। कारण कि इस युग में धर्म चार पदों से वर्तमान है। इसमें तपस्या आदि धर्म कार्य ब्राह्मण ही कर सकते हैं, अन्य जाति नहीं। इस समय तुम्हारे राज्य में एक शूद्र घोर तपस्या में कटिबद्ध है, इसी दोष के कारण तुम्हारे राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। अतः आप इस शूद्र तपस्वी का वध कर दीजिये।

राजा ने कहा- हे महर्षि! निरपराध शूद्र तपस्वी को मैं मारने में असमर्थ हूँ। आप कोई दूसरा उपाय बताइए। तब मुनि ने कहा- तुम आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का व्रत अपनी सभी प्रजा के साथ प्रेमपूर्वक करो। इस व्रत के प्रभाव से राज्य में उत्तम वृष्टि हुई और पृथ्वी जल से परिपूर्ण हो गयी। भगवान की कृपा से प्रजा कष्टमुक्त हो गयी।

इस व्रत को सभी मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत मुक्ति को प्रदान करने वाला एवं अत्यंत ही पुण्यफल को देने वाला है। इसको पढ़ने और सुनने से मनुष्यों के घोर से घोर पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

हरे कृष्ण !!

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