श्रीमद् भागवत माहात्म्य
सच्चिदानंदस्वरुप भगवान श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक – तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाले हैं।
कहते हैं कि अनेक पुराणों और महाभारत की रचना के उपरान्त भी भगवान व्यास जी को परितोष नहीं हुआ। परम आह्लाद तो उनको श्रीमद् भागवत की रचना के पश्चात् ही हुआ, कारण कि भगवान श्रीकृष्ण इसके कुशल कर्णधार हैं, जो इस असार संसार सागर से सद्यः सुख-शांति पूर्वक पार करने के लिए सुदृढ़ नौका के समान हैं।
यह श्रीमद् भागवत ग्रन्थ प्रेमाश्रुसक्ति नेत्र, गदगद कंठ, द्रवित चित्त एवं भाव समाधि निमग्न परम रसज्ञ श्रीशुकदेव जी के मुख से उद्गीत हुआ। सम्पूर्ण सिद्धांतो का निष्कर्ष यह ग्रन्थ जन्म व मृत्यु के भय का नाश कर देता है, भक्ति के प्रवाह को बढ़ाता है तथा भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता का प्रधान साधन है। मन की शुद्धि के लिए श्रीमद् भगवत से बढ़कर कोई साधन नहीं है।
यह श्रीमद् भागवत कथा देवताओं को भी दुर्लभ है तभी परीक्षित जी की सभा में शुकदेव जी ने कथामृत के बदले में अमृत कलश नहीं लिया। ब्रह्मा जी ने सत्यलोक में तराजू बाँध कर जब सब साधनों, व्रत, यज्ञ, ध्यान, तप, मूर्तिपूजा आदि को तोला तो सभी साधन तोल में हल्के पड़ गए और अपने महत्व के कारण भागवत ही सबसे भारी रहा।
अपनी लीला समाप्त करके जब श्री भगवान निज धाम को जाने के लिए उद्यत हुए तो सभी भक्त गणों ने प्रार्थना कि- हम आपके बिना कैसे रहेंगे तब श्री भगवान ने कहा कि वे श्रीमद् भगवत में समाए हैं। यह ग्रन्थ शाश्वत उन्हीं का स्वरुप है।
पठन-पाठन व श्रवण से तत्काल मोक्ष देने वाले इस महाग्रंथ को सप्ताह-विधि से श्रवण करने पर यह निश्चय ही भक्ति प्रदान करता है।
ॐ श्री सत्गुरुवे नमः ।।