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पूतना उद्धार (Emancipation Of Putana)

lord krishna birthयोग माया ने आकाशवाणी द्वारा कंस से कहा – तेरे काल का जन्म हो चुका है, तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है। यह सुनकर कंस घबरा गया।

कंस ने अपने मन्त्रियों को बुलाया तथा योगमाया द्वारा कही गयी बातों पर मन्त्रणा करने लगा। कंस के मूर्ख मन्त्रियों ने कहा- “हे राजन्! देवताओं ने यह धोखा दिया है इसलिये देवताओं का ही नाश करना चाहिये। ब्राह्मणों के यज्ञादि को बन्द करवा देना चाहिये और पिछले दस दिनों के भीतर उत्पन्न हुये सभी बालकों को भी मार डालना चाहिये।”

कंस ढूँढ-ढूँढ कर नवजात शिशुओं का वध करवाने लगा। उसने पूतना नाम की एक क्रूर राक्षसी को ब्रज में भेजा। जिसका एक ही काम था- बच्चों को मारना। कंस की आज्ञा से वह नगर, ग्राम जहाँ भी नवजात शिशु देखती उनका वध कर देती। पूतना आकाशमार्ग से चल सकती थी और अपनी इच्छा के अनुसार रूप भी बना लेती थी।

पूतना का गोकुल आगमन (Putana Arrives At Gokul)

इधर गोकुल में बालकृष्ण की छठी मनाई जा रही थी। बालकृष्ण आज छः दिन के हो गये। लाला को पालने में सुलाकर मैया सबके स्वागत सत्कार में लगी हुईं थीं।

पूतना आकाश मार्ग से जा रही थी, गोेकुल के ऊपर से जब गई तो देखा यहाँ बहुत बड़ा उत्सव हो रहा है। पता लगाया तो पता लगा कि यहाँ एक बालक की छठी का उत्सव है। पूतना ने सोचा- छठी अर्थात् छठवां दिन और मैंने नियम लिया है कि दस दिन के अन्दर जितने बालकों ने जन्म लिया है, सबको मारना है। बालक का इतना बड़ा उत्सव मनाया जा रहा है, हो सकता है ये वही बालक हो, जिसको कंस खोज रहा है।

पूतना का नन्दबाबा के घर में प्रवेश (Putana’s Entry Into Nandbaba’s House)

पूतना ने बड़ा सुन्दर वेश बनाया क्योंकि राक्षसी के वेश में तो लोग अन्दर जाने नहीं देते। बालों में फूल लगाये, सुन्दर वस्त्र पहने, सुन्दर कुण्डल पहने, हाथों में कमल का फूल लिया और मुस्कुराती हुई नंदबाबा के घर में आ गई।

krishna sleepingघर में प्रवेश करते ही पूतना सीधे पालने में लेटे बालकृष्ण के पास आ गई। बालकृष्ण ने पूतना को देखा और आखें बन्द कर लीं। भगवान ने अपनी आखें क्यों बन्द कर लीं? इस विषय पर सन्तों ने अलग-अलग भाव दिये हैं-

  1. भगवान ने सोचा- मैं तो ब्रज में आया था, कि यहाँ माखन-मिश्री खाने को मिलेगा और ये छठी के दिन पूतना विष पिलाने आ गयी। इसलिये आखें बन्द कर लीं।
  2. भगवान ने सोचा- अगर मैं आखें खोलकर रखूँगा तो पूतना का सौन्दर्य गायब हो जायेगा, माया मेरे सामने ठहर नहीं सकती। सच्चाई प्रकट हो जायेगी तो पूतना उद्धार की लीला कैसे होगी। इसलिये आखें बन्द कर लीं।
  3. सूर्य और चन्द्र भगवान कृष्ण के नेत्र हैं। सूर्य और चन्द्र पूतना से इतने नाराज हो गये कि दोनों ने रास्ते बन्द कर दिये। तुम भगवान को विष पिलाने आयी हो तुम्हारी सद्गति न सूर्य-मार्ग से होगी न चन्द्र-मार्ग से होगी। इसलिये कन्हैया के दोनों नेत्र बन्द हो गये।

पूतना का वध (End Of Putana)

पूतना ने कन्हैया को गोद में उठा लिया और दूध पिलाने लग गई। उसकी मनोहरता और सुन्दरता ने यशोदा और रोहिणी को भी मोहित कर लिया, इसलिये उन्होंने बालक को उठाने और दूध पिलाने से नहीं रोका।

Lord krishna kills the demon putanaपूतना के स्तनों में भयंकर और किसी प्रकार भी पच न सकनेवाला विष लगा हुआ था। अन्तर्यामी श्रीकृष्ण सब जान गये और क्रोध को साथी बनाकर अपने दोनों हाथों से उसके स्तनों को जोर से दबाया और उसके प्राण सहित दुग्धपान करने लगे। उनके दुग्धपान से पूतना के मर्म स्थलों में अति पीड़ा होने लगी और उसके प्राण निकलने लगे। वह पुकारने लगी- ‘अरे छोड़ दे, छोड़ दे, अब बस कर!’ वह बार-बार अपने हाथ और पैर पटक-पटक कर रोने लगी।

कन्हैया ने कहा- मौसी जी! मेरा एक नियम है या तो मैं जल्दी से कभी किसी को स्वीकार करता नहीं और एक बार कर लिया तो कभी छोड़ता नहीं। मैं तो तुम्हारे पास नहीं आया तुम्हीं ने जबरदस्ती उठाया मुझे। अब मैं नहीं छोडूँगा।

पूतना दर्द से छटपटाने लगी और अपने राक्षसी वेश में प्रकट हो गयी। उसके शरीर से प्राण निकल गये, मुँह फट गया, बाल बिखर गये और हाथ-पाँव फ़ैल गये। पूतना के शरीर ने गिरते-गिरते भी छः कोस के भीतर के वृक्षों को कुचल डाला। उसका शरीर बड़ा भयानक और विशाल था। इस प्रकार बालकृष्ण ने पूतना का उद्धार किया और उसी के ऊपर खेलने लग गये।

पूतना के उस भयानक और विशाल शरीर को देखकर सब-के-सब ग्वाल और गोपियाँ डर गयीं। गोपियों ने देखा कि बालकृष्ण उसकी छाती पर निर्भय होकर खेल रहे हैं तब वे बड़ी घबराईं और उतावली होकर झटपट वहाँ पहुँच गयीं तथा बालकृष्ण को उठा लिया।

Yashoda maiya and baby krishnaयशोदा मैया बहुत डर गईं, अपने लाला को गोद में लेकर चूमने लगीं। मैया उनको गोबर लगाती हैं, गईया की पूँछ घुमाती हैं, नजर उतारती हैं। सोचती हैं-पता नहीं किस गोपी की नजर लग गई है मेरे लाला को। छठी के दिन ही इतना उपद्रव हो गया।

नन्दबाबा ने कहा- ये राक्षसी है। इस पर भरोसा मत करो कि ये मर गई, इसको जला दो। तब सारे ब्रजवासी पूतना के शरीर को गाड़ियों में रखकर यमुना जी के किनारे ले गये और उसका अग्नि-संस्कार किया। जब पूतना का शरीर जलने लग गया तो उसमें से सुगन्ध निकल रही थी।

हम सभी के मन में प्रश्न उठेगा कि मुर्दे में से तो दुर्गन्ध निकलती है, सुगन्ध कैसे निकल रही थी? तो ये सब श्रीकृष्ण के स्पर्श का प्रभाव है। श्रीकृष्ण का दर्शन और स्पर्श प्राप्त होने के कारण पूतना के पंचभूत भी दिव्य हो गये थे, इसलिये दुर्गन्ध न निकलकर सुगन्ध निकल रही थी। ये श्रीकृष्ण के स्पर्श का प्रभाव है, कन्हैया की महिमा है।

पूतना के पूर्व जन्म की कथा (Past Life Of Putana)

पूतना को कन्हैया ने माता की गति दे दी। पूतना पिछले जन्म में राजा बलि की बेटी थी। इसका नाम था विधुतमाला। जब वामन भगवान बलि को छलने आये थे तो विधुतमाला उनको देखकर बहुत खुश हुईं और उसके मन में अभिलाषा हुई कि ऐसा बालक मेरा होता तो मैं उसको दूध पिलाती। परन्तु जब वामन भगवान ने बलि को छल लिया तब विधुतमाला कहती हैं- “ये बालक तो विष पिलाने लायक है। दूध पिलाने लायक नहीं।” यही विधुतमाला अगले जन्म में पूतना बनी और उसने भगवान को दूध भी पिलाया और विष भी पिलाया। पूतना का मातृत्व भाव पूर्वजन्म से ही था इसलिये भगवान ने कृपा करके उसको माता की गति दे दी और उसको अपने धाम में भेज दिया। इस तरह भगवान ने पूतना का उद्धार किया।