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कालयवन की कथा (The Story Of Kalayavana)

कालयवन का परिचय (Kalayavana’s Introduction)

गार्ग्य एक ऋषि थे, एक बार उनके साले ने उन्हें मज़ाक में नपुन्सक कह दिया, इस बात पर गार्ग्य को क्रोध आ गया और उन्होंने महादेव की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उसे वरदान माँगने को कहा। तो उन्होंने पुत्र की कामना की, जो यादवों के लिए आतंक बने। बाद में जब यवनों के संतानहीन राज्य में संतान के लिए प्रार्थना की गई, तब उन्होंने  यवन की एक स्त्री से पुत्र उत्पन्न किया जिसका नाम कालयवन पड़ा।

कालयवन में भगवान शिव की तरह क्रोध था। एक बार जब कालयवन नारद जी से मिला तो उसने पूछा मेरे को कोई लड़ने वाला बताओ। यह दुष्ट का स्वभाव होता है जब उसे कोई लड़ने वाला नहीं मिलता तो वह अपने घर में ही झगड़ने लगता है।

Krsna and Kalayavanaनारद जी दुविधा में आ गए और भयभीत होकर भगवान श्री कृष्ण का नाम ले बैठे, फिर कालयवन ने नारद जी से श्री कृष्ण की पहचान पूछी, जिसके जवाब में नारद जी बोले, वो साँवरा-साँवरा है, पीताम्बर पहनता है, वनमाला तथा कुण्डल पहनता है, और सबसे बड़ी पहचान है, हर परिस्थिती में मुस्कुराता रहता है

कालयवन मथुरा पहुँचा और वहाँ जाकर ललकारा- यहाँ कोई कृष्ण नाम का योद्धा है? मैं उससे युद्ध करना चाहता हूँ। श्री कृष्ण बिना अपनी सेना के अकेले ही निकले, रथ भी नहीं लिया और कालयवन के सामने आकर खड़े हो गए। नारद जी के द्वारा बताए गए लक्षणों द्वारा कालयवन ने भी श्री कृष्ण को पहचान लिया क्योंकि श्री कृष्ण बिना किसी अस्त्र शस्त्र के थे। इसलिए कालयवन ने भी सोचा वह बिना किसी अस्त्र शस्त्र के ही युद्ध करेगा।

ऐसा निश्चय करके कालयवन जब भगवान श्री कृष्ण की ओर दौड़ा, तब वह दूसरी ओर मुख करके रणभूमि से भाग चले और उन जगत के स्वामी को पकड़ने के लिए कालयवन उनके पीछे-पीछे दौड़ पड़ा। तभी से श्री कृष्ण का नाम रणछोड़ पड़ा। रणछोड़ भगवान लीला करते हुए भाग रहे थे; कालयवन पग-पग पर यही समझता कि अब पकड़ा, तब पकड़ा। इस प्रकार भगवान उसे बहुत दूर एक पहाड़ की गुफा में ले गए। मथुरा से आगे धौलपुर के पास राजस्थान की सीमा है वहाँ “मुचुकुन्द” गुफा है। मथुरा से भागते-भागते श्री कृष्ण वहाँ पहुँचकर उस गुफा में छिप गए, जहाँ मुचुकुन्द जी सोए हुए थे।

मुचुकुन्द जी का परिचय (Muchukunda Ji’s Introduction)

kalayavanaमुचुकुन्द जी ने देवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता की थी। जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने उनसे वरदान माँगने को कहा मुचुकुन्द जी ने वरदान में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन माँगे,और कहा, जब तक भगवान के दर्शन ना हों, मेरी नींद लगी रहे। भगवान के अलावा कोई जगाए तो मेरे नेत्र खुलते ही वह भस्म हो जाए, देवताओं ने उन्हें यह वरदान दे दिया।

कालयवन का अंत (Kalayavana’s End)

भगवान श्री कृष्ण को मुचुकुन्द जी को जगाना तो था ही, क्योंकि उनको दर्शन देने थे, तो उन्होंनें सोचा जगाने का कार्य तो कालयवन से कराएगें तथा दर्शन हम दे देगें। अब श्री कृष्ण ने अपना पीतांबर निकाल कर मुचुकुन्द जी को ओढ़ा दिया और स्वंय गुफा के अंदर अंधेरे मे छिप गए। कालयवन भागते-भागते गुफा के भीतर आया और मुचुकुन्द जी को श्री कृष्ण समझ कर उन पर चरण प्रहार किया। मुचुकुन्द जी की नींद टूटी, उनके नेत्र खुलते ही कालयवन भस्म हो गया। मुचुकुन्द जी कुछ समझ नहीं पाए, समझते भी कैसे क्योंकि यह भगवान श्री कृष्ण की लीला जो थी।

भगवान श्री कृष्ण और मुचुकुन्द जी का वार्तालाप (Conversation Between Lord Krishna And Muchukunda JI)

krishnaराजा मुचुकुन्द ने कहा- आप कौन हैं? इस काँटों से भरे हुए जंगल में आप कमल के समान कोमल चरणों से क्यों विचर रहे हैं। क्या आप भगवान अग्नि देव तो नहीं हैं? क्या आप सूर्य, चंद्रमा, देवराज इंद्र या कोई दूसरे लोकपाल हैं? मैं तो ऐसा समझता हूँ आप देवताओं के आराध्य देव ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश – इन तीनों में से पुरुषोतम भगवान नारायण ही हैं।

श्री कृष्ण ने कहा- कौन सा परिचय दूँ और किस अवतार का परिचय दूँ? किस जन्म का दूँ? मेरे तो जन्म और कर्म अनेक हैं, दिव्य हैं।

मुचुकुन्द जी ने कहा- हे प्रभो! इस समय का परिचय दे दीजिए।

श्री कृष्ण बोले- इस समय मुझे वसुदेव पुत्र वासुदेव कहते हैं।

उनका परिचय सुनते ही मुचुकुन्द जी प्रसन्न होकर साक्षात् उनके चरणों में लेट गए। भगवान श्री कृष्ण ने उनसे प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा। मुचुकुन्द जी ने उत्तर में कहा कि- यह सारा संसार तो आपकी ही माया से मोहित है। इच्छा भी आपकी माया का स्वरूप है। इच्छा रूपी माया से ही व्यक्ति दुखी है, इच्छा समाप्त हो जाए तभी सुख है ।

मुचुकुन्द जी ने अपने अनुभव से बताया दुनिया के संबंध तो आने जाने वाले हैं। संबंध जोड़ना ही है तो ठाकुर जी से जोड़ें, जो कि हमेशा रहेंगे। यदि उनसे संबंध जोड़ेंगे तो हम भले ही भूल जाएँ पर वो पकड़ कर रखेंगे, ये उनका स्वभाव है। वे आगे कहते हैं, हे प्रभु! आपकी माया से ही सारा संसार मोहित है। जिनके पास पैसा है वो परिवार से दुखी है, जिनके पास परिवार है वो पैसे से दुखी है। हे प्रभो! ऐसा कौन नासमझ व्यक्ति होगा, जो आपको प्राप्त करके आपसे दुनिया की वस्तु माँगेगा? अगर आप देना ही चाहते हैं तो अपने  चरणों  का नित्य सानिध्य दे दीजिए।

श्री कृष्ण जी मुस्कुराए ओर बोले जरूर मिलेगा लेकिन उसके लिए तुम्हें एक जन्म ओर लेना पड़ेगा। ये भगवान श्री कृष्ण की लीला थी क्योंकि उन्हें अभी अपनें भक्त से सेवा लेनी थी।

मुचुकुन्द जी को भगवान ने इस कलिकाल में अपने भक्त नरसी मेहता के रूप में जन्म दिया, भक्ति का प्रचार करने के  लिए, वो जानते थे कि मुचुकुन्द जैसा भक्त ही मेरी भक्ति को आगे बढ़ाएगा। मुचुकुन्द जी ने कहा ठीक है प्रभु जैसा आपका आदेश।

शिक्षा (Moral)

  1. भगवान भले ही हमारे सामने खड़े हों पर जब तक उनकी कृपा ना हो, कोई उन्हें पहचान ही नहीं सकता।
  2. भगवान श्री कृष्ण हेतु रहित दयालु हैं, उन्होंने कालयवन जैसे दुष्ट, जो भगवान से द्वेष करता था उसका भी उद्धार कर दिया।
  3. भगवान से भगवान को ही माँगना चाहिए, संसारी वस्तुएँ नहीं।

संकलित – श्रीमद्भागवत-महापुराण।
लेखक – महर्षि वेदव्यास जी।