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भक्त रामदास (Bhakt Ramadasu)

lord rama with sita ji and laxmnaआंध्र प्रदेश के खयम् जिले में भद्राचलम् नाम का एक छोटा-सा गाँव है। वहाँ 16वीं सदी में राम मन्दिर की स्थापना हुई। यह गोदावरी नदी के किनारे बसा हुआ है। इस मन्दिर की स्थापना से सम्बन्धित एक भक्त गाथा प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है-

यवनों का शासन था, भद्राचलम् गाँव में रामदास नाम का एक रामभक्त रहता था। भगवान् राम पर विश्वास कर वह सब कार्य करता था। कुछ समय बाद वह उसी गाँव का तहसीलदार बना। प्रतिवर्ष मालगुजारी वसूल होती थी। वह ईमानदारी से वसूला हुआ धन सरकारी खजाने में जमा करता था। बादशाह भी उसके कार्य से सन्तुष्ट था। स्वयं बादशाह भी भक्त था। पाँच बार नमाज़ पढ़ता। रोज़ा, दान-धर्म करता था, दयालु था। एक वर्ष तक उसी प्रकार तहसील का पैसा जमा हुआ।

एक दिन अकस्मात् रामदास के मन में राम मन्दिर बनवाने की इच्छा जाग्रत हुई। उस प्रेरणा से प्रेरित होकर उसने राम मन्दिर का काम प्रारम्भ करवा दिया। धन तो उसके पास था नहीं, किन्तु लोगों से ज़मीन का वसूल किया हुआ सरकारी धन था। उसने वह सारा का सारा धन राम मन्दिर के निर्माण में ख़र्च कर दिया। रामदास को विश्वास था कि बादशाह भी ऐसे धर्म के कार्य में मना नहीं करेगा बल्कि सुनकर खुश ही होगा। किन्तु जब बादशाह को यह बात पता चली कि तहसीलदार ने इस वर्ष की मालगुजारी ख़जाने में जमा नहीं की और सरकारी धन से राम मन्दिर बनवा दिया है, तो बादशाह को बहुत क्रोध आया। उन्होंने सिपाहियों को भेजकर तहसीलदार को गिरफ़्तार करके अपने पास बुलवाया।

भक्त रामदास को बड़ा दुःख हुआ। बादशाह ने उसे बुरा- भला कहा और पूछा कि यह पैसा किसका था? किसकी अनुमति से तुमने यह धन ख़र्च किया? यह तो जनता के प्रति अन्याय है। जनता के धन को तुमने लूटा है। तुम चोर हो, विश्वासघाती हो। इसी प्रकार अनेक कठोर शब्द कहे और कहा कि यदि सात दिन के अन्दर सरकारी धन नहीं लौटाया तो तुम्हें फाँसी की सज़ा दी जायेगी। तब तक तुम जेल में बन्दी बनकर रहोगे।

Devotee of lord rama- ramadassभक्त रामदास ने बादशाह से कहा कि- सरकार मैंने खजाने का धन अपने लिए नहीं, जनता के लिए ख़र्च किया है। अब तो मेरे राम ही मेरी रक्षा करेंगे। आपका धन आपको प्रभु राम ही लौटाएंगे। ऐसा उत्तर सुनकर राजा और क्रोधित हो उठा और बोला- ठीक है देखूँगा तुम्हारा राम तुम्हारी रक्षा कैसे करेगा?

रामदास को जेल में बन्द कर दिया गया। उन्हें तो राम-नाम का सहारा था। वह जेल में रात-दिन श्रीराम का भजन करने लगा। खाना-पीना भूल गया। ‘राम’ के सिवाय कोई मेरी सहायता नहीं करेगा, ऐसा उसका पूर्ण विश्वास था। वह कभी-कभी प्रभु राम पर गुस्सा भी हो जाता और कहता-तुम झूठे हो। तुम्हारे लिए मैंने मन्दिर बनवाया, तुम्हारे लिए ही सारा जीवन बिताया। तुम्हारे ही कारण मैंने अपनी प्रतिष्ठा खोयी, ऐसा कहते-कहते वह दुःखी हो सिर पटकने लगता। कभी रोने लगता, कभी भूखा रह जाता और भगवान् के चरणों में गिरकर कहता- मैं अपने प्राणों का त्याग कर दूँगा। भगवान् मेरी रक्षा करो। कभी वह भजन गाता-

श्री राम जय राम जय जय राम, श्री राम…….
रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीता राम।

इस प्रकार भजन गाते-गाते सोते-जागते, उठते-बैठते भगवान् का स्मरण करते वह जेल का कष्टमय जीवन बिता रहा था। अवधि के 6 दिन पूरे हुए, किन्तु भगवान् उसको दिखायी नहीं दिये। शरीर बहुत क्षीण हो गया। ऐसी अवस्था में नींद कैसे आती? वह राम-राम कहता रहा और रात हो गयी। छठी रात को ठीक 12 बजे बादशाह के महल में दो युवक पहुँचे। बादशाह उस समय गहरी नींद में थे, युवकों ने उन्हें जगाया। बादशाह घबरा कर चिल्लाये, युवकों ने कहा- बादशाह डरो मत, हम चोर नहीं हैं। हम तो रामदास का कर्ज़ा चुकाने आये हैं, यह लो सोने की मुहरें।

rama with laxmnaबादशाह ने पूछा- तुम कौन? उन्होंने कहा- हम दोनों भाई हैं। मेरा नाम रामा जी और मेरे भाई का नाम लक्ष्मो जी है- ऐसा कहकर उन्होंने मुहरों की थैली बादशाह को दे दी। बादशाह ने थैली खोलकर देखा तो मोहरें असली थीं। बादशाह को आश्चर्य हुआ। युवकों ने बादशाह से रुपये प्राप्ति की रसीद माँगी। बादशाह ने मन्त्री द्वारा रसीद दिलायी। रसीद लेकर वे दोनों जब जाने लगे तो पहरेदारों ने उन्हें पकड़ना चाहा, किन्तु बादशाह ने उन्हें छोड़ देने की आज्ञा दी। बादशाह को यह घटना स्वप्न जैसी मालूम हुई। प्रातःकाल बादशाह ने उन मोहरों को देखा, सब असली थीं। बादशाह ने मन्त्री को आज्ञा दी कि रामदास को फाँसी न दें और उसे छोड़ दिया जाये।

इधर रामदास प्रातःकाल उठा। उसे मालूम था कि आज फाँसी मिलने वाली है। एक बार फिर अपने श्रीराम पर क्रोध भी आया। भगवान् से प्रार्थना करने लगा- भगवान् जो कुछ भी किया मैंने तुम्हारे लिए किया, फिर भी मैं समाज तथा बादशाह के सामने चोर, धोखेबाज प्रमाणित हुआ। मैंने अपने परिवार को भिखारी बनाया। फिर भी आपकी ऐसी ही इच्छा है तो यही हो, किन्तु मैं तुम्हें छोड़कर अन्य किसी दूसरे की शरण में नहीं जाऊँगा। प्यार करो या ठुकरा दो। ऐसा कहते हुए उसे रुलायी आ गयी, राम-राम कहते हुए आँखों से आँसू बहने लगे। उसी समय अचानक बादशाह के सिपाही वहाँ आये और उन्होंने रामदास को सम्मान के साथ ले जाकर बादशाह के सामने उपस्थित कर दिया।

बादशाह ने रात की घटना सुनायी, भक्त रामदास से माफ़ी माँगी और कहा- तुम्हारे द्वारा ख़र्च किया हुआ धन हमें रात में रामोजी, लक्ष्मोजी नामक युवक दे गये हैं और उन्होंने मुझे तुम्हें मुक्त करने को कहा है। हम तुम्हारी रामभक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए हैं। हमने तुम्हें बहुत कष्ट दिया, जो बातें कहीं उसके लिए हमें क्षमा करो। हम यह धन भी तुम्हें देते हैं। अब तुम इस इलाके में राम का मन्दिर बनवाओ। बादशाह की बात सुनकर रामदास आश्चर्य में पड़ गये। उन्हें भी पश्चाताप हुआ कि मैंने अपने रामजी को क्या-क्या नहीं कहा था ?

तदन्तर रामदास ने बादशाह के दिये हुए धन से उसी भद्राचलम् गाँव में गोदावरी के किनारे एक सुन्दर राम मन्दिर बनवाया, जो आज भी वहाँ विद्यमान है। प्रतिवर्ष चैत्र रामनवमी को वहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। भक्त श्रीराम का दर्शन करते हैं। भगवान् श्रीराम भक्तों के मनोरथों को पूर्ण करते हैं, साथ ही उन्हें अपनी कल्याण कारिणी अविचल भक्ति भी प्रदान करते हैं।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।