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Life Story of Uma Bhagwan (Ammaji)

pic-2-copyजब गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा, दिव्य प्रेम और समर्पण की बात आती है तो हमारे अन्तस् में एक ही मिसाल उभरती है ‘उमा भगवान’। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन गुरु-चरणों में समर्पित कर दिया। गुरु कहें- “सागर का पानी मीठा” तो कहिये, “हाँ जी! हाँ!” – यही उनके जीवन का लक्ष्य था।

सदा से यह रीति चली आ रही है कि जब संत जगत में आते हैं तो उस समय उन्हें पहचानने वाले प्रेमी भक्त बहुत थोड़े होते हैं। बाद में लोग उन्हें भगवान के रूप में पहचानते हैं और उनकी महिमा गाते हैं। ऐसा ही उमा भगवान के जीवन में हुआ। उनके विराट जीवन को व्यक्त करना सूर्य को दीपक दिखाने मात्र है, किन्तु जो भी उनके जीवन में देखा वह इन शब्दों में अनुस्यूत है।

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पूज्य अम्माजी के शरीर का जन्म अलवर (राजस्थान) में 22 सितम्बर 1924 में घर कि बड़ी पुत्री के रूप में एक संस्कारी परिवार में हुआ। घर में बड़े होने के कारण माता ‘राजरानी’ के साथ घर कि जिम्मेदारी और छोटे भाई-बहनों को पालने में पूरा सहयोग दिया। तत्पश्चात अम्माजी का विवाह सन 1943 में अलीगढ के एक जमींदार घराने के ‘श्री जगदीश प्रसाद सिंघल‘ के साथ हुआ जो कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय के कैमिस्ट्री विभाग में लेक्चर्र थे।

शुरू से ही बड़े घराने की बहू होने के नाते ससुराल में पूरी सेवा और मर्यादा का पालन किया। भगवत कृपा से उन्हें तीन पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। उन्होंने माँ के दायित्व को भी बहुत अच्छी तरह निभाया। वे सर्दियों के दिनों में बच्चों को अँगीठी पर गर्म किये कपड़े पहनाते थे। उनका बच्चों के प्रति यही मोह, सद्गुरु का सानिध्य पाकर गुरु प्रेम में परिवर्तित हो गया।

अम्माजी बाहर से जितने सुन्दर थे उतनी ही सुंदरता उनके भीतर भी समाहित थी। उनका व्यवहार बालकवत था, अंदर और बाहर एक। जो भी बात उन्हें कहनी होती थी, निःसंकोच कह देते थे। उनका हृदय एकदम सरल एवं पवित्र था। उनका जीवन सात्विक और राजसी गुणों का मिश्रण था। उनको घर का हर काम बहुत कायदे से करना पसंद था, घर के काम के साथ-साथ सिलाई, कढ़ाई, क्रोशिया, बैडमिंटन, चैस व पेंटिंग बनाने का शौक था। वह हर कार्य को पूरे मनोयोग से करते थे

उनका पारिवारिक जीवन ठीक प्रकार चल रहा था पर प्रकृति उनसे बहुत बड़ा कार्य कराना चाहती थी और उसके लिए तैयारी विपदाओं से शुरू हुई। अचानक 21 वर्ष के जवान पुत्र का शरीर शांत हो गया, थोड़े समय बाद ही सास का, फिर हार्ट फेल से पति का, उसके पश्चात् ससुर की मृत्यु ने आपके जीवन को निराशा, दुःख और चिंता के गहरे अंधकार में धकेल दिया, जिसने आपकी पूजा-पाठ, व्रत आदि में आस्था को बिलकुल छिन्न-भिन्न कर दिया।

अम्माजी के जीवन में परिवर्तन

1-012-3aआपने कहीं सुन रखा था की सत्संग से शांति मिलती है। आप भगवान से प्रार्थना करते, “हे भगवान! मुझे सत्संग मिले।“ अब जैसे दीपक, तेल व बाती सभी तैयार थे। जीवन में वैराग्य, भक्ति तो थी ही, जरुरत थी तो सद्गुरु के सानिध्य रुपी ज्योति की। सच्चे हृदय से की गयी प्रार्थना कबूल होती है। एक बार लखनऊ से आपकी ननद आईं, जो आपको लखनऊ साथ ले गयीं। वहाँ पहली बार आपने गीता भगवान की शिष्या ‘प्रमिला जी’ से सत्संग सुना और वहाँ से गीता भगवान की वाणी की कैसेट लीं।

लखनऊ से अलीगढ़ आते ही आपने सूटकेस से कैसेट निकाली और छोटे से टेप- रिकॉर्डर में लगाकर अपने पुत्र ‘सिद्धार्थ भैयाजी’ एवं बहू ‘ममता भाभीजी’ को बुलाया। कैसेट शुरू करके आपने कहा- “सुनो! हमारे गुरु क्या कहते हैं।“ इसी पल से अलीगढ़ में सत्संग की शुरुआत हुई।

geeta-bhagwanसन 1982 में आपको वह सुनहरा अवसर मिला जब आपने पहली बार ‘गीता भगवान’ का साक्षात् दर्शन किया और उनके अमृत वचनों को हृदय में संजोया। दो जोड़ी कपडे लेकर आप दो दिन के लिए गए थे, पर गुरु के आत्मिक प्रेम में ऐसे डूब गए की ढ़ाई महीने बाद अलीगढ़ वापस आये।

“नजर गुरु की जिसपे हो जाये,

बन्दे से वो तो खुदा हो जाये।“

अम्माजी ने अपने अनुभव में बताया कि 60 साल में जो ख़ुशी मुझे नहीं मिली, वो गीता भगवान के सानिध्य में ढ़ाई महीने रहकर हुई। गीता भगवान से जो आपका रूहानी मिलन हुआ उसने आपके आत्म-निश्चय को दृढ़ किया और अंदर की लगन, शौक, तड़प को पहले से ज्यादा बढ़ा दिया। आपकी तीव्र जिज्ञासा, गुरु भक्ति और सेवा भाव ने बहुत जल्दी आपको गुरु के निकट पहुँचा दिया। आपको शांत और मौन रहना पसंद था। आप सेवा के इतने शौक़ीन थे कि छोटी से छोटी सेवाओं में भी आप पीछे नहीं रहते थे।

अम्माजी का त्याग और तपस्या

गीता भगवान के श्रीमुख से आपको आत्मा कि बात सुनना बहुत प्रिय लगता। शुरू से ही आत्म-ज्ञान आपको बहुत प्रिय लगा और यही आत्मा का ज्ञान आपके श्रीमुख से निकलता। जब भी कभी गुरु के पास से बुलावा आता, अम्माजी फ़ौरन जाने को तैयार हो जाते। चाहे घर में कैसी भी हालत-परिस्थिति हो, चाहे अपना शरीर ही अस्वस्थ हो। आपके लिए “गुरु का बुलावा काल का बुलावा“ था।

img_0018गुरु वाणी में आपने सुन रखा था कि जो गुरु के निष्काम प्रेम और आत्म ज्ञान को सिर्फ अपने तक सीमित रखता है वह चोर है। उन्हें लगता था कि अगर मैं गुरु का वचन सबको नहीं सुनाऊँगी तो चोर कहलाऊँगी। अम्मा जी ने गुरु का ये वचन ज्यों का त्यों उठाया, जिसके फलस्वरूप आपने अपना तन, मन, धन सब न्यौछावर कर दिया। इसके लिए इतनी कुर्बानी की कि सुबह 11 बजे सत्संग के लिए निकलते और 4 बजे घर वापस आते। गुरु का कार्य आप इतने निष्काम भाव से करते कि सत्संग करते समय पानी भी नहीं पीते। वहाँ उनके घर का काम भी कराते और कहते कि तुम बस सत्संग सुनो। आपने अपनी एक-एक साँस, खून का एक-एक कतरा गुरु के निष्काम यज्ञ में अर्पण कर दिया।

आपका नियम था कि आप सुबह,दोपहर एवं रात में तीनों समय गीता भगवान कि वाणी जरूर सुनते थे जब कभी रात को देखा जाता, उनके कमरे कि लाइट जलती हुई मिलती- जिसमें वो या तो ध्यान कर रहे होते या गुरु के लिए पत्र लिख रहे होते।

अम्माजी का आत्म-निश्चय

गुरु का कराया निश्चय- “तुम शरीर नहीं आत्मा हो” वह सभी को पक्का कराते थे। आपका जीवन सर्व के हित के लिए ही रहा। आप हर समय हर आने वाले साधक के साथ ज्ञान चर्चा के लिए तत्पर रहते। आपका ज्ञान का शौक और अनन्य गुरु भक्ति अनुकरणीय थी। आप हर प्रश्न का उत्तर आत्मा से ही देते थे। जैसे कोई कहता, “मैं बहुत परेशान हूँ, दुखी हूँ।” तो उत्तर देते, “तू क्या मन है? तू तो आत्मा है आत्मा में दुःख कहाँ?

img_0012अगर कोई कहता, “आप तो बहुत बीमार रहते हैं, आपकी तो प्रारब्ध बहुत कठिन है।” तो कहते, “मैं आत्मा हूँ, आत्मा में बीमारी कहाँ होती है। प्रारब्ध तो शरीर की है, मुझ आत्मा की कोई प्रारब्ध नहीं है।“ अम्माजी कहते थे, “आत्मा के निश्चय में रहो, आत्मिक गुणों का चिंतन करो और मुख से जवाब निकले तो आत्मा का ही निकले

जो प्रेमी आपके पास आते उन्हें परमार्थ के साथ-साथ व्यव्हार की बात भी समझाते थे। अपना आदर्श दिखाकर सबको सिखाते कि कैसे उठना, बैठना, चलना चाहिए, कैसे नम्रता भाव से सेवा करनी चाहिए। नम्रता और प्रेम की वे अद्भुत मूर्ति थे। उनके पास जो भी आता उनके प्रेम और भोलेपन से मुग्ध हो उन्हीं का होकर रह जाता।

“ओ मेरे सतगुरु दयाल सतगुरु,

क्या तुमने मुझको नहीं दिया है,

अकूत खजाना देकर के कहते,

मैंने कुछ भी नहीं दिया है।”

‘गुरु की डाँट मोहन थाल से भी प्यारी है।’ आपने कभी भी गुरु के आगे अपनी सफाई में कुछ नहीं कहा। गुरु के हर वचन को स्वीकार किया। आपकी जो प्रीत गुरु से थी, वही प्रेमियों को भी अनुभव हुई।

जिसने आपको पाया, उसने सब कुछ पा लिया। जिसने आपको देखा, उसने सब कुछ देख लिया। जिसने आपको जाना उसे किसी और की चाहत न रही। गीता भगवान जैसे सद्गुरु के पास जाकर काँच कैसे हीरा बन गया। श्रीमती उमा सिंघल (साधारण घरेलु स्त्री) उमा भगवान बन गए। गुरु के सानिध्य में आपका संघर्षों से भरा जीवन कुंदन की भाँति चमक उठा।

अम्माजी का महासमाधी दिवस

20 दिसम्बर 1993, सब प्रेमी सत्संग के लिए पहुँच रहे थे, गीता भगवान के भजन चल रहे थे। पूज्य भैयाजी एवं भाभीजी बैठे हुए थे, एकदम शांत एवं सम। थोड़ी देर बाद भैयाजी ने सब प्रेमियों से कहा कि आप सब जाकर अंदर अम्माजी का दर्शन कर आएं, अम्माजी ब्रह्मलीन हो गए हैं, ज्योत-ज्योत में समा गयी है। सभी प्रेमी अवाक् रह गए।

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भाव पूर्ण हृदय से सभी प्रेमी अपने प्रियतम सद्गुरु को अंतिम विदाई देते हुए ये महसूस कर रहे थे कि अम्माजी अपने प्रेमी भक्तों के हृदय में समा गए हैं तथा सभी के स्वासों कि धड़कन बन गए हैं।

पूज्य अम्माजी मसीहा बन कर आये। अपने सामने उन्होंने किसी भी प्रेमी भक्त से पैर नहीं छुलवाये, पूजा नहीं करवाई, हार-फूल-माला नहीं चढ़वाई। उन्होंने सबको निष्काम प्रेम देकर आत्मा का निश्चय पक्का कराया। आपके तन, मन, धन की कुर्बानी और अतिशय अनन्य गुरु भक्ति के साथ-साथ आत्मज्ञान का जबरदस्त शौक आज भी आपके स्वरुप पूज्य भैयाजी, पूज्य भाभीजी में दिखाई देता है।

अम्माजी अपने गुरु को बहुत प्रेम व भाव से याद करते हुए शुकराना मानते थे और यह भजन गाया करते थे –

“सतगुरु तुमसे लगन मेरी लागी रहे,

ब्रह्माकार वृत्ति मेरी जागती रहे।”

जीवन को प्रभावित करने वाले तो बहुत गुरु मिल जाते हैं, पर जो जीवन को प्रकाशित करें, मंजिल तक पहुचाएँ, ऐसे सद्गुरु दुर्लभ होते हैं।

“जो जीवन का मार्ग दिखाकर,

स्वयं मिटकर, जीव भाव से हमें उठाकर,

कर दे जीवन को दैदीप्यमान,

वही हैं मेरे गुरु भगवान।”

गुरु भगवान के अनंत अनंत शुक्राने।।

7 responses on "Life Story of Uma Bhagwan (Ammaji)"

  1. Guru bhagwan g k anant anant shukrane……

  2. Sadguru bhagwan ka anant shukrana
    Divine Uma Bhagwan ko koti koti naman he.
    Guru bhagwan se yahi prarthna he ki hamara jeevan bhi divine Amma ji jaisa nishkaami bane.
    Hare krishna

  3. Satguru bhagwan ko naman hai. Uma bhagwan ke anant-anant shukrane. Guru bhagwan se yahi parthna hai ki hamara jivan bi uma bhagwan jaise bane.shukrane.

  4. Ammaji ke shree charno m koti koti naman ha. mera jeevan bhi pujay Ammaji jaisa nishkami bane yahi prarthna ha. Guru Bhagwanji Guru Maaji ke anant anant shukrane hain.

  5. Gurubhagwan ko Naman h. Aapki kripa Ammaji ka prem hme aise hi aage bdata rhe. Hmara jeevan bhi guru k prem m dooba rhe. NISHKAMI BNE. ANANYA GURU BHAKTI HO. SHUKRANE GURU BHAGWANJI K.

  6. Amma ji k charno m koti koti naman
    Guru bhagwan ji v guru maa k anant shukrane hain
    Aapse yahi prarthna h ki hamara jeevan bhi aise hi nishkami or guru prem m rahe

  7. Ammaji ko Shat Shat Naman hain jinhone khud jal kar GuruBhagwan roopi prakash hame diya!

    Bus yahi prarthna hi SadGuru ke shri charno me ki is jeevan ki bachi hui har swaans me sirf prabhu ka NaamJap or nishkaam seva ho.

    Ammaji ke Nishkaam jeevan ko koti koti naman hi!

    Dandvat Pranam Bhagwanji!

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