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दामोदर लीला (Damodar Lila)

ऊखल बंधन लीला को ही दामोदर लीला भी कहते हैं। यह भगवान् की अत्यंत सुन्दर लीला है।

lord krishna and yashoda maiyaएक समय की बात है, नन्दरानी यशोदा जी ने घर की सभी दासियों को तो दूसरे कामों में लगा दिया और स्वयं अपने लाला को माखन खिलाने के लिए दही मथने लगीं। मैया कन्हैया की लीलाओं का स्मरण करतीं और गाती भी जाती थीं। नन्दबाबा के यहाँ हजारों सेवक-सेविकायें थी, लेकिन लाला का काम मैया अपने हाथों से ही करती थीं।

हम, आप सोचेंगे वह स्वयं माखन क्यों निकाल रहीं थीं। किसी सेवाधारी से भी ये कार्य करा सकती थीं तो गुरु भगवान् ने बताया- मैया लाला का कार्य स्वयं करती हैं, इससे मैया और कान्हा का प्रेम बढ़ता है। जो मातायें अपने बच्चों का कार्य स्वयं नहीं करती, सेवकों से करवाती हैं, उनके बच्चों का बड़े होकर अपने माता-पिता से प्रेम रहेगा कि नहीं ये अपने आप में संदेहजनक है।

यशोदा मैया ने बालों में कुछ फूल लगाए हुए थे। वो फूल दही मंथन के समय बालों से निकलकर चरणों में गिरने लग गये। फूलों ने सोचा यशोदा मईया श्री कृष्ण की इतनी प्रेमी भक्त हैं, इनके सिर पर रहने का अधिकार हमको नहीं है। इनके चरणों मे रहकर ही हमको अपना जीवन सफल करना होगा।

मैया और कन्हैया का प्रेम (Loving Bond Between Krishna And Yashoda)

Lord-Krishna-and-gop-being-caught-by-Mother-Yashoda-for-stealing-butterकन्हैया अपनी मैया के पास आये और मैया के हृदय में प्रेम को बढ़ाते हुए दही की मथानी पकड़ ली, उन्हें दही मथने से रोक दिया और स्वयं माता की गोद में कूदकर चढ़ गए। वात्सल्यस्नेह की अधिकता के कारण मैया लाला को दूध पिलाने लगीं।

पद्मगन्धा गाय का दूध आग में रखा हुआ था वो उबलने लग गया। गैया के दूध ने सोचा- कन्हैया आज मैया का दूध ही पी लेंगे, तो मेरे को स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए मैं आग में कूदकर आत्म-हत्या कर लूँगा। अगर भगवान् मुझे स्वीकार नहीं करेंगे तो मेरे जीने का क्या लाभ?

दूध उफनता देखकर मैया ने लाला को अतृप्त ही छोड़कर जल्दी से दूध उतारने के लिये चली गयीं। इससे कन्हैया को क्रोध आ गया। उन्होंने सोचा जिस दूध-दही ने मेरे और मैया के बीच में भेद डाला है अब इस दूध-दही को सुरक्षित नहीं रहने दूँगा। कन्हैया ने एक पत्थर उठाया और पास रखी हुई मटकी पर दे मारा। मटकी फूट गयी और दूध-दही फ़ैल गया।

अब कन्हैया ने बनावटी आँसू आँखों में भर लिए, दूसरे कमरे में जाकर बासी माखन खाने लगे और बंदरों को भी खिलाने लग गये। सोचा- ये मेरे पूर्व जन्म के साथी हैं।

जब मैया आयीं उन्होंने देखा मटकी टूटी पड़ी है, माखन फैला हुआ है। मैया समझ गयी कि यह सब मेरे लाला की ही करतूत है। मैया छड़ी लेकर वहाँ पहुँची जहाँ कन्हैया ऊखल पर बैठकर बंदरों को माखन खिला रहे थे। कन्हैया ने देखा मैया छड़ी लेकर आ रही है तो वह नन्दभवन के पीछे के दरवाजे से भागे।

कन्हैया की विलक्षण लीला (Mesmerizing Leela Of Krishna)

आज बड़ी विलक्षण लीला हो रही है। बड़े-बड़े देवता देख रहे हैं, नारद जी देख रहे हैं, गोपियाँ देख रही हैं। भगवान् आगे-आगे और भक्त पीछे-पीछे भाग रहा है। बड़े-बड़े योगी तपस्या के द्वारा अपने मन को अत्यन्त सूक्ष्म व शुद्ध बनाकर भी जिनमें प्रवेश नहीं करा पाते, उन्हीं भगवान को पकड़ने के लिए यशोदाजी पीछे-पीछे दौड़ रहीं हैं, किन्तु श्रीकृष्ण हाथ नहीं आते।

mother yashoda tying rope to lord krishnaजब कन्हैया ने देखा मैया थक गयी, तब वो खड़े हो गये और मैया ने पकड़ लिया। कन्हैया का हाथ पकड़कर वे उन्हें डराने-धमकाने लगीं। उस समय लाला की झाँकी बड़ी विलक्षण हो रही थी। कन्हैया रोने और आँसू बहाने लग गये। यशोदा मैया ने देखा कि लाला बहुत डर गया है, मैया ने छड़ी फेंक दी। इसके बाद सोचा कि इसको एक बार रस्सी से बाँध देना चाहिये। मैया ने रस्सी मँगायी बाँधने के लिए और कन्हैया को बाँधने लग गयीं।

कन्हैया ने फिर से लीला प्रारम्भ कर दी रस्सी दो अंगुल छोटी पड़ गयी! तब मैया ने दूसरी रस्सी जोड़ी वह भी दो अंगुल छोटी पड़ गयी इस प्रकार सारे गोकुल की रस्सी जोड़ दी, फिर भी कन्हैया को न बाँध सकी और रस्सी छोटी पड़ी तो दो अगुंल।

दो अँगुल रस्सी छोटी पड़ने का अभिप्राय (अर्थ) भगवान् बताते हैं कि मैया मैं ये दो काम जब पूरे होते हैं, तभी मैं किसी के बंधन में आता हूँ। कौन से? भजन करने वाले भक्त में अभिलाषा हो और भगवान की कृपा हो। तभी भगवान् भक्त के काबू में आते हैं, बंधन में बंधते है।

भगवान श्रीकृष्ण ने देखा मैया बहुत थक गयी हैं; तब कृपा करके वे स्वयं ही माँ के बंधन में बंध गये। वैसे तो श्रीकृष्ण परम स्वतंत्र हैं। ब्रह्मा, इंद्र आदि के साथ ये सम्पूर्ण जगत इनके वश में है। फिर भी इस तरह बंधकर, उन्होंने संसार को यह बात बताई कि मैं प्रेमी भक्तों के वश में हूँ।

संस्कृत में डोरी को दाम कहते है और उदर कहते हैं पेट को। यशोदा मैया ने भगवान् श्री कृष्ण के पेट को रस्सी से बाँधा इसलिए भगवान् का नाम पड़ा दामोदर

यमलार्जुन का उद्धार (Salvation Of Yamlarjun)

मैया कन्हैया को ऊखल से बाँधकर अपने काम में लग गई। कन्हैया ने देखा मैया अपना काम कर रही है, तो मैं भी अपना काम कर लूँ।

यमलार्जुन का उद्धारनन्द भवन के बहार यमलार्जुन के दो वृक्ष खड़े हुए थे। एक का नाम नलकूबर और दुसरे का नाम मणिग्रीव जो नारद जी के शाप से वृक्ष हो गये थे, उनका उद्धार करना था। कन्हैया ऊखल को खीचतें हुए नन्दभवन के बाहर आ गये। वहाँ उन्होंने ऊखल को दोनों वृक्षों के बीच में फंसाया और जोर से जहाँ खीचा, भयानक आवाज हुई और दोनों वृक्ष गिर पड़े। उनमे से दिव्य पुरुष प्रकट हो गये।

नलकूबर और मणिग्रीव पिछले जन्म में बड़े दुष्ट और उपद्रवी थे। नारद जी के शाप से इनको नंदबाबा के आँगन में वृक्ष बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का दर्शन करते हुए इनकी बुद्धि शुद्ध हो गयी। आज उन्हें अपने वृक्ष अवतार से मुक्ति मिल गई। उन्होंने श्री कृष्ण से वरदान माँगा-

  • हे प्रभु! आज के बाद हमारी वाणी से अगर कुछ निकले तो आपका नाम निकले या आपकी कथा निकले। इधर-उधर की बातों से समय व्यर्थ न हो।
  • कानों से हम कुछ सुने तो आपका गुणगान, आपका कीर्तन, आपकी कथा ये दूसरा वरदान है।
  • हाथों से अगर कोई काम करे तो आपकी सेवा, मंदिर की सेवा, संत की सेवा, ठाकुर सेवा हो । ये है हाथों का उपयोग।
  • मन हमेशा आपका चिंतन करे ये वरदान माँगा।
  • हमारा मस्तक सारे लोगो को प्रणाम करने के लिये झुकता रहे। क्योंकि सारे लोगों में आप विराजमान हैं। हमारी दृष्टि सदा आपके दर्शन करे या भगवद्भक्त के दर्शन करे ऐसा हमे वरदान दीजिए।

भगवान ने उनको वरदान दिया, और वो भगवान के धाम को चले गये।

शिक्षा (Moral)

  1. ये गोपी नन्दन भगवान् अनन्य प्रेमी भक्तों के लिए जितने सुलभ हैं, उतने ही देहाभिमानी, कर्मकांडी एवं तपस्वियों के लिए  दुर्लभ हैं।
  2. श्री कृष्ण भगवान् जानते थे कि कलियुग में उनकी लीलाएँ अत्यन्त मनोहारी होगीं, जो मन को खीचेगीं। इसलिए उन्होनें ये लीला की।
  3. दो अंगुल रस्सी छोटी पड़ने का अभिप्राय है कि भगवान् दिखाना चाहते हैं- जब किसी मनुष्य के मन में इच्छा और अहंकार (दो अंगुल) होते हैं और वो मुझे पाने की अभिलाषा करता है तब मैं उससे नहीं बँधता। जब उसके मन से इच्छा और अहंकार निकल जाते हैं तब मैं उस पर कृपा करता हूँ और उसके बन्धन में बँध जाता हूँ।

संकलित – श्रीमद्भागवत-महापुराण। 
लेखक – महर्षि वेदव्यास जी।